दस्तक
ख्वाबों के घर के न खुलते दरवाजे देखकर,
मायूस होकर तुम दस्तक देना न छोड़ देना।
हँसी ही हँसी हो चाहे तेरे होठों की किस्मत में,
आँसू किसी की आँखों के तुम भी कभी पोंछ देना।
ग़मों के कारवाँ से गर हो जाये मुलाक़ात,
न घबराना ग़मों से रिश्ता कोई जोड़ लेना।
अपने ग़मों का हवाला तो देते ही हो उस ऊपरवाले को,
खुशियाँ भी अपनी कभी नाम उसके कर देना।
खो जाये जो तेरा जमीर राहों में कभी,
जमाने की गर्द में 'नीलम' उसे खोज लेना।
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