इंसानियत
मौत बेचकर ज़िन्दगी खरीदना चाहता है,
जरा सोच तो बंदे , तू ये क्या चाहता है।
कोई जज़्बा इंसानियत का बाकी नहीं दिलों में,
गुनाहगारों की है बादशाहत भरी महफिलों में,
खुदा की नेमत है ये तेरी ज़िन्दगानी,
इस बेशकीमती सौगात को क़त्ल करना चाहता है
जरा सोच तो बंदे, तू ये क्या चाहता है।
न रखा है तूने जहाँ पर कोई कर्ज़,
न किया अदा जहाँ का कोई कर्ज़,
बेमतलब है तेरी ये ज़िन्दगानी,
इसी को क्यों कयामत तक जीना चाहता है,
जरा सोच तो बंदे, तू ये क्या चाहता है।
कहते हो खुदा का नाम तुम भी लेते हो,
महफ़िलों में उसे ही तो रुसवा करते हो,
खुदा के नाम पर दाग है तेरी ये ज़िन्दगानी,
उसी खुदा को हदों में क़ैद करना चाहता है,
जरा सोच तो बंदे तू ये क्या चाहता है।
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