खून की नदियाँ बहा दी जिसके लिए,
सर पर कफ़न पहन कर निकले थे जिसके लिए,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
किसानों के पसीने की कीमत सरे आम दो टके भी नही,
विदेशी संसाधनों की तक़दीर बीच बाज़ार में चमक रही,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
हिंदू और मुसलमान कहने को तो हैं भाई भाई,
1947 के बंटवारे को देश की जनता क्या अब तक समझ पाई,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
उच्च वर्ग आडम्बर के आड़ में छुप रहा,
मध्यमवर्ग महँगाई की धुन में पिस रहा,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
हर एक जगह में भाई भतीजावाद ने मारा छापा,
बेरोज़गार नौजवान पीढ़ी बस खो रही है आपा,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
रूढ़िवाद अंधविश्वास की डोर को अब तक है थामा,
बाह्य आधुनिकता का सबने बखूबी पहन लिया है जामा,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
माँ बहनो की इज़्ज़त का हो रहा क़त्ल सरे आम,
औरत को बस यूं ही दे रखा है देवी का नाम,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
अपने अपने स्वसुख की होड़ में देश के हित को मिली मात,
गुटबाज़ी की राजनीति ने दिखाई क्या करामात,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
सरस्वती के प्रांगण में सज गया है चोर बाज़ार,
अमीर ही बन गए विद्या के जागीरदार,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
चिकित्सा भी तो हो रही पॉकेट पर भारी,
लंबे चौड़े बिल के पीछे छुप गई कितनी बीमारी,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
पाश्चात्य संस्कृति के अनुसरण ने भारतीयता को किया शर्मशार ,
अटुट रिश्तों की ये धरती उभरते फ़ासलों से गई हार,
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
सुभाष चन्द्र, भगतसिंह, चंद्र शेखर आज़ाद,
देख कर भारत को करते होंगे वो ग़ुलामी के दिन याद,
जान की बाज़ी लगाई जिसके लिये क्या ये वो आजादी है?
देखा था जिसका सपना क्या ये वो आज़ादी है?
Amazingg!!!
ReplyDeleteAmazingg!!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा। आप तो हमरी बात ई बलि। ईसितरा आप ओर लिखते याईए म्यम। बादाई हो। मै निशान्त का म्याथस् प्राईभेट टीचार(क्लास नाईन/टेन) थे।
ReplyDeleteसच में बदलाव की बहुत जरूरत है
ReplyDeleteU really pen down so perfectly